ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
हे मेघो !
प्यासा है तेरी बूंदो का
ये सारा जहान,
बरसाओ पानी मेघों से
हे इन्द्र देव महान।
धरती का पानी भी अब
प्यास नहीं बुझा सकता
चातक पक्षी की भांति
हाल हुआ है प्रभु हमारा
धुंए, धूप को समझ पानी
मर रहे हैं इंसान।
बरसाओ पानी मेघों से
हे इन्द्र देव महान।
भूमि भी शुष्क आँखों से
देख रही एकटक ऊपर को
आँचल रूपी बादल संहित
धरती ऊपर बरस पड़ो
बरसाकर बहुत सा पानी
आल से आल का करो मिलान।
बरसाओ पानी मेघों से
हे इन्द्र देव महान।
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