ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
प्रियतम
क्या कहते हो प्रियतम
मुझे छोड़ तुम जाओगे,
जो आनंद बाहों में मेरे
और कहां तुम पाओगे।
होगा दिल में चैन नहीं
मेरे बिन कोई रैन नहीं
हर जगह तुम प्रियतम
बैचेनी ही बस पाओगे।
जो आनंद बाहों में मेरे
और कहां तुम पाओगे।
मैं करती उत्साह वर्धन
मैं तुम्हारा तन-मन-धन
फिर छोडक़र मुझको तुम
और किसे अपनाओगे।
जो आनंद बाहों में मेरे
और कहां तुम पाओगे।
माना अश्रु देकर मुझे
चैन मिलेगा थोड़ा तुझे
छोड़ आधे रास्ते पर मुझे
जा मंजिल पर पछताओगे।
जो आनंद बाहों में मेरे
और कहां तुम पाओगे।
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