ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
यादें
बचपन की यादें
आती हैं चली जाती हैं
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बचपन में यूं खुले-धड़ल्ले
घुमने जाना आसमां नीचे
हरे भरे मैदानों में
चारों तरफ फैली हरियाली
फले फूल गुलिस्तानों में
आज भी फिर क्यों नहीं है ,
खेतों और खलिहानों में
जो सपनों में आती है।
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बचपन का वो दायरा
न छोटा न कोई बड़ा
सबको समझना एक समान
चाचा ताऊ या हो दादा
फिर क्यों पहना अहम् का चोला
ईश्वर ने हमको बड़ा किया
सोच कर यह बात दिल में
सनसनी सी दौड़ जाती है।
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
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