ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
कुछ न था
गम बहुत सारे मिले
मगर कोई अपना न था
जिसके सहारे लगाता दिल
ऐसा कोई हमदम न था।
आँखों में अश्रु दिल में प्यार
भटकता रहा द्वार-द्वार
चल रही थी ठंडी बयार
मगर कोई शोला न था।
जिसके सहारे लगाता दिल
ऐसा कोई हमदम न था।
आरजू का फूल लिए मैं
जलाए राह में कई दिये
दिये बुझ गए वो सारे
रास्ता ही कुछ अच्छा न था।
जिसके सहारे लगाता दिल
ऐसा कोई हमदम न था।
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