ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
छोटे हाथ
छोटे-छोटे कर कमलों में
लाल कांच की चूडिय़ां
जिन्हें देख कर आँखों से
मन मुदित सा हुआ मेरा।
नाक में सोने की नथनी
पैरों में चांदी की पायल
मध्य में चांदी की करधनी
कानों में सोने के कुंडल
ओढें सिर पर लाल चुनरिया।
जिन्हें देख कर आँखों से
मन मुदित सा हुआ मेरा।
जब चलती तो ऐसी लगती
जैसे साक्षात लक्ष्मी हो
भोला-भाला लाल चेहरा
साक्षात उस देवी का
एक दिन मुझे दर्शन हुआ।
जिन्हें देख कर आँखों से
मन मुदित सा हुआ मेरा।
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