ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
आपकी याद
आज के सुहाने मौसम में भी
याद नहीं आती है आपकी।
मुझे है नौकरी की चिन्ता
मन मेरा उदास है लगता
शरीर बना है मेरा चिता
फिर क्यों होगी मेरे मन पर
बरसात आपकी इन जुल्फों की।
आज के सुहाने मौसम में भी
याद नहीं आती है आपकी।
क्या करूं क्या ना करूं
सोच कर इन छोटी बातों को
मन रोना कर देता है शुरू
सोचती हो तुम बस यही
याद आए हमेशा मुझे आपकी।
आज के सुहाने मौसम में भी
याद नहीं आती है आपकी।
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