ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
ऐ घटाओ !
ऐ हवाओं ऐ घटाओ
आँचल से जरा अपने
पानी की बूंदे गिराओ।
धरती का तन सूखा-सूखा
प्रेम अश्रुओं का ये भूखा
देख रहा अपलक तुम्हें
इसकी आशाओ को तुम
यूं ना मन से भुलाओ।
अ हवाओं ऐ घटाओ
आँचल से जरा अपने
पानी की बूंदे गिराओ।
आज धरा यूं विचलित होकर
उड़ती है धूल खाती है ठोकर
फिर क्यों नहीं करते तुम सिंचित
इसके कोमल अंगों को और
महका दो फिजाओं को।
अ हवाओं ऐ घटाओ
आँचल से जरा अपने
पानी की बूंदे गिराओ।
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