ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
श्वेत बगुले
ऊंचे नील गगन में ,
पंक्तियों में श्वेत बगुले।
लगते हैं अति सुंदर
मन को करते हर्षित
लम्बी गर्दन खुले पंख
लगता विचित्र आकर्षण
संध्याकालिन जब ये उड़ते
ऊंचे नील गगन में,
पंक्तियों में श्वेत बगुले।
मन मेरा लेता उडारी
चढ़ देखूं जब अटारी
मन चंचल बन उड़ता
फै ला अरमानों की झोली
जब-जब देखूं इनको मैं।
ऊंचे नील गगन में,
पंक्तियों में श्वेत बगुले।
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