ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बारिश
उदक फुदक-फुदक कर ,
छन-छन-छनकता हुआ,
मेघों के पारभाषी आँचल से
टपक-टपक-टपक रहा।
तरूवर चुप खड़े निढाल से
फु नगियों को अंदर मुंदे हुए
मोती सा धरती पर गिरता
छप की ध्वनि कर रहा।
मेघों के पारभाषी आँचल से
टपक-टपक-टपक रहा।
चमकीली दमकीली यामिनी
नवल धवल स्वच्छ चांदनी
नौका रूपी मेघों के मध्य
तड़-तड़ कौंधती हैं बिजलियां
मेघों के पारभाषी आँचल से
टपक-टपक-टपक रहा।
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