ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
मेरी तमन्ना
चाहता हूँ लग जाए मुझे भी पंख
छू लूं आकाश, चूमूं बादल भी।
देखता हूँ अम्बर को जब
हो जाती हैं तेज सांसे
नज्ब जाती है भडक़
तभी तो रहता हूँ सोचता
उड़ता फिरूं मैं भी
चाहता हूँ लग जाए मुझे भी पंख
छू लूं आकाश, चूमूं बादल भी।
आँखों में एक चमक
होठों पर मंद हँसी
आ जाती है तब
देखता हूँ जब मेघ तीतर पंखी
आता है मजा भी
चाहता हूँ लग जाए मुझे भी पंख
छू लूं आकाश, चूमूं बादल भी।
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