ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
प्यारा गाँव
गाँव मेरा है प्यारा,
सब गाँवों से न्यारा।
जब शहर को जाता हूँ
गाँव की यादें संग लेता हूँ
तन्हाई में कभी बैठ कर
यादों को मैं संजोता हूँ
उन यादों को संजोकर
बुनता हूँ एक हार प्यारा,
सब हारों से है न्यारा।
गाँव मेरा है प्यारा,
सब गाँवों से न्यारा।
खुशबू रोम-रोम में मेरे
मेरे गाँव की मिट्टी की
मिट्टी नाम दिया दुनिया ने
वो भूमि तो मां है मेरी
सोचता हूँ कटे जीवन मेरा
उस पावन भूमि पर सारा।
सब जगहों से है न्यारा।
गाँव मेरा है प्यारा,
सब गाँवों से न्यारा।
मेरे गाँव की अल्हड़ बातें
रोज घुमने खेतों में जाते
खेतों में हरियाली देखकर
हम सब प्रसन्न हो जाते
मेरी प्रभू से है ये प्रार्थना
बीते मेरा जन्म यहीं पर
देना यहीं जन्म दोबारा।
गाँव मेरा है प्यारा,
सब गाँवों से न्यारा।
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