ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
आँचल छूकर आई हवा
तेरे आँचल को छूकर आई हवा,
खुशबू तेरे बदन की लाई हवा।
इस हवा में तेरा फूल सा चेहरा
मुझे अनायास दिखाई देने लगा
खुशबू से होता है रोओं में स्पंदन
रोम-रोम होता है मेरा प्रफुल्लित
देख तुम्हारे सुन्दर मनोहर मुख को
कहां से ऐसा खुमार लाई हवा।
तेरे आँचल को छूकर आई हवा,
खुशबू तेरे बदन की लाई हवा।
हवा में ठंडक व महकती सुगंध
जैसे हो बना अभी ताजा गुलकंद
मस्ती में झूमती सी यह लगती
कैसे इठलाती चलती आ रही
इठलाती बलखाती आ रही है
जैसे आती हो मेरी दिलरूबा।
तेरे आँचल को छूकर आई हवा,
खुशबू तेरे बदन की लाई हवा।
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