ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
मैं कवि बना
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।
मेरे गमों ने मेरा साथ दिया
रोते हुए कुछ पंक्तियां लिखी
और कवि बन गया।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।
मैंने जिन्हें चाहा था
उन्होंने कभी साथ न दिया
इसलिए मैं लिखने लगा।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।
गम लिपट गये दामन से मेरे
दोस्तों ने साथ छुड़ा लिया
गमों को शब्दों में ढालने लगा।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।
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