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यादें (काव्य-संग्रह)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607
आईएसबीएन :9781613015933

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


मैं कवि बना


मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।

मेरे गमों ने मेरा साथ दिया
रोते हुए कुछ पंक्तियां लिखी
और कवि बन गया।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।

मैंने जिन्हें चाहा था
उन्होंने कभी साथ न दिया
इसलिए मैं लिखने लगा।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।

गम लिपट गये दामन से मेरे
दोस्तों ने साथ छुड़ा लिया
गमों को शब्दों में ढालने लगा।
मैं कवि न था,
मगर कवि बन गया।                            

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