ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
परिन्दे
उन्मुक्त नील गगन में
विचर रहे कुछ परिन्दे।
काश, हम भी उड़ पाते
छोटे-छोटे पंख लग जाते
करते हम प्रेम चमन से।
उन्मुक्त नील गगन में
विचर रहे कुछ परिन्दे।
कभी धरा पे कभी गगन में
रहते उड़ते फिरते हम सभी
भय न रहता किसी का हमें।
उन्मुक्त नील गगन में
विचर रहे कुछ परिन्दे।
ना किसी साथी की चिन्ता
खा लेते भोजन जो मिलता
रहते किसी बगीचे-वन में।
उन्मुक्त नील गगन में
विचर रहे कुछ परिन्दे।
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