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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

दुर्बलता ही मृत्यु है

कमजोर न तो इहलोक के योग्य है, न किसी परलोक के। दुर्बलता से मनुष्य गुलाम बनता है। दुर्बलता से ही सब प्रकार के शारीरिक और मानसिक दुःख आते हैं। दुर्बलता ही मृत्यु है। लाखों-करोड़ों कीटाणु हमारे आसपास हैं, परन्तु जब तक हम दुर्बल नहीं होते, जब तक शरीर उनके उपयुक्त नहीं होता, तब तक वे हमें कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। ऐसे करोड़ों दुःखरूपी कीटाणु हमारे आसपास क्यों न मँडराते रहें, कुछ चिन्ता न करो। जब तक हमारा मन कमजोर नहीं होता, तब तक उनकी हिम्मत नहीं कि वे हमारे पास फटकें, उनमें ताकत नहीं कि वे हम पर हमला करें। यह एक बड़ा सत्य है कि बल ही जीवन है और दुर्बलता ही मरण। बल ही अनन्त सुख तथा अमर और शाश्वत जीवन है और दुर्बलता ही मृत्यु।

देखो, हम सभी कैसे बहेलिये द्वारा खदेड़े हुये खरगोश की भाँति भागते हैं, उसी की भांति मुँह छिपाकर अपने को निरापद मानते हैं। ऐसे ही जो यह समग्र संसार भीषण देखता है, देखो, कैसे उससे भागने की चेष्टा करता है। एक बार मैं काशी में एक जगह से गुजर रहा था, वहाँ एक ओर बड़ा तालाब और दूसरी तरफ एक ऊँची दीवाल थी। उस स्थान पर बहुत-से बन्दर थे। काशी के बन्दर बड़े-बड़े होते हैं और कभी-कभी बड़े दुष्ट भी। उन्होंने मुझे उस रास्ते पर से न जाने देने का निश्चय किया। वे विकट चीत्कार करने लगे और आकर मेरे पैरों से लिपटने लगे। उन्हें देखकर मैं भागने लगा, किन्तु मैं जितना तेज दौड़ने लगा, वे उससे अधिक तेजी से आकर मुझे काटने लगे। उनके हाथ से छुटकारा पाना असम्भव- सा लगा। ठीक तभी एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझे आवाज दी, 'बन्दरों का सामना करो', और मैं जैसे ही पलटकर उनके सामने खड़ा हुआ, वे पीछे हटकर भाग गये। जीवन में हमको यह शिक्षा लेनी होगी - जो कुछ भयानक है, उसका सामना करना पड़ेगा, साहसपूर्वक उसके सामने खड़ा होना पड़ेगा। जैसे बन्दरों के सामने से न भागकर उनका सामना करने पर वे भाग गये, वैसे ही हमारे जीवन में जो कुछ कष्टप्रद बातें हैं, उनका सामना करने पर, वे भाग जाती हैं। यदि हमें कभी स्वाधीनता पानी हो, तो हम प्रकृति को जीत कर ही उसे प्राप्त करेंगे, प्रकृति से भागकर नहीं। कापुरुष कभी विजयी नहीं हो सकता। हमें भय, कष्ट और अज्ञान के साथ संग्राम करना होगा, तभी वे हमारे सामने से भाग जायेंगे।

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