ई-पुस्तकें >> व्यक्तित्व का विकास व्यक्तित्व का विकासस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका
व्यक्तित्व-विकास के नियम
योगशास्त्र यह दावा करता है कि उसने उन नियमों को ढूँढ़ निकाला है, जिनके द्वारा इस व्यक्तित्व का विकास किया जा सकता है। इन नियमों तथा उपायों की ओर ठीक-ठीक ध्यान देने से मनुष्य अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और उसे शक्तिशाली बना सकता है। महत्वपूर्ण व्यवहारोपयोगी बातों में यह भी एक है और यही समस्त शिक्षा का रहस्य है। इसकी उपयोगिता सार्वदेशीय है। चाहे वह गृहस्थ हो, चाहे गरीब, अमीर, व्यापारी या धार्मिक - सभी के जीवन में व्यक्तित्व को शक्तिशाली बनाना ही एक महत्त्व की बात है। ऐसे अनेक सूक्ष्म नियम हैं, जो इन भौतिक नियमों के परे हैं - ऐसा हम जानते हैं। मतलब यह कि भौतिक जगत्, मानसिक जगत् या आध्यात्मिक जगत् - इस तरह की कोई नितान्त स्वतंत्र सत्ताएँ नहीं हैं। जो कुछ है, सब एक तत्त्व है। या हम यों कहेंगे कि यह सब एक शुंडाकार वस्तु है, जो यहाँ नीचे की ओर मोटी या स्थूल है और जैसे जैसे यह ऊँची चढ़ती है, वैसे ही वैसे वह पतली या सूक्ष्म होती जाती है, सूक्ष्मतम को हम आत्मा कहते हैं और स्थूलतम को शरीर। जो पिण्ड (अणु) में है वही ब्रह्माण्ड में है। यह हमारा विश्व ठीक इसी तरह का है। बहिरंग में स्थूल घनत्व है और जैसे-जैसे यह ऊँचा चढ़ता जाता है, वैसे वैसे वह सूक्ष्मतर होता जाता है और अन्त में परमेश्वर रूप बन जाता है।
हम यह भी जानते हैं कि सबसे अधिक शक्ति सूक्ष्म में है, स्थूल में नहीं। एक मनुष्य भारी वजन उठाता है। उसकी पेशियाँ फूल उठती हैं और सम्पूर्ण शरीर पर परिश्रम के चिह्न दिखने लगते हैं। हम समझते हैं कि पेशियाँ बहुत शक्तिशाली वस्तु हैं। परन्तु असल में जो पेशियों को शक्ति देती हैं, वे तो धागे के समान पतली नाड़ियाँ (Nerves) हैं। जिस क्षण इन तन्तुओं में से एक का भी सम्बन्ध पेशियों से टूट जाता है, उसी क्षण ये पेशियाँ बेकार हो जाती हैं। ये छोटी छोटी नाड़ियाँ किसी अन्य सूक्ष्मतर वस्तु से अपनी शक्ति ग्रहण करती हैं और वह सूक्ष्मतर वस्तु फिर अपने से भी अधिक सूक्ष्म, विचारों से शक्ति ग्रहण करती है। इसी तरह यह क्रम चलता रहता है। इसलिए वह सूक्ष्म तत्व ही है, जो शक्ति का अधिष्ठान है।
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