ई-पुस्तकें >> व्यक्तित्व का विकास व्यक्तित्व का विकासस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका
स्थूल में होनेवाली गति हम अवश्य देख सकते हैं, परन्तु सूक्ष्म में होनेवाली गति हम देख नहीं सकते। जब स्थूल वस्तुएँ गति करती है, तो हमें उनका बोध होता है और इसलिए हम स्वाभाविक ही गति का सम्बन्ध स्थूल से जोड़ देते हैं, वास्तव में सारी शक्ति सूक्ष्म में ही है। सूक्ष्म में होने वाली गति हम देख नहीं सकते। शायद इसका कारण यह है कि वह गति इतनी गहरी होती है कि हम उसका अनुभव ही नहीं कर सकते। पर यदि कोई शास्त्र या कोई शोध इन सूक्ष्म शक्तियों के ग्रहण करने में सहायता दे, तो इन शक्तियों का परिणाम-रूप यह व्यक्त विश्व ही हमारे अधीन हो जायेगा। पानी का एक बुलबुला झील के तल से निकलता है, वह ऊपर आता है, परन्तु जब तक कि वह सतह पर आकर फूट नहीं जाता, तब तक हम उसे देख नहीं सकते। इसी तरह विचार अधिक विकसित होने पर या कार्य में परिणत हो जाने पर ही देखे जा सकते हैं। हम सदा यही कहा करते हैं कि हमारे कर्मों पर, हमारे विचारों पर हमारा अधिकार नहीं है। यह अधिकार हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं? यदि हम सूक्ष्म गतियों पर नियंत्रण कर सकें, विचार के विचार बनने एवं कार्यरूप में परिणत होने के पूर्व ही यदि उसको मूल में ही अपने अधीन कर सकें, तो इस सबको नियंत्रित कर सकना हमारे लिए सम्भव होगा। अब, यदि ऐसा कोई उपाय हो, जिसके द्वारा हम इन सूक्ष्म कारणों और इन सूक्ष्म शक्तियों का विश्लेषण कर सकें, उन्हें समझ सकें और अन्त में अपने अधीन कर सकें, तभी हम स्वयं अपना शासन चला सकेंगे। और जिस मनुष्य का मन उसके अधीन होगा, वह निश्चय ही दूसरों के मनों को भी अपने अधीन कर सकेगा। इसी कारण पवित्रता तथा नैतिकता सदा धर्म के विषय रहे हैं। पवित्र, सदाचारी मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण रखता है। और सारे मन एक ही हैं, समष्टि- मन के अंश मात्र हैं। जिसे एक ढेले का ज्ञान हो गया, उसने दुनिया की सारी मिट्टी जान ली। जो अपने मन को जानता है और स्व-अधीन रख सकता है, वह हर मन का रहस्य जानता और हर मन पर अधिकार रखता है। यदि हम इन सूक्ष्म अंशों को नियंत्रित कर सकें, तो अपने अधिकांश शारीरिक कष्टों को दूर कर सकते हैं, यदि हम इन हलचलों को वश में कर सकें, तो हम अपनी उलझनों को दूर कर सकते हैं, यदि हम इन सूक्ष्म शक्तियों को अपने अधीन कर लें, तो अनेक असफलतायें टाली जा सकती हैं।
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