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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका


प्रत्येक मनुष्य यह दिखलाने की कोशिश करता है कि वह निर्दोष है, और सारा दोष वह किसी व्यक्ति पर, किसी वस्तु पर, और अन्ततः दुर्भाग्य पर मढ़ना चाहता है। जब घर का मुखिया असफल हो, तो उसे स्वयं से पूछना चाहिये कि कुछ लोग अपना घर कैसे इतनी अच्छी तरह से चला सकते हैं और दूसरे क्यों नहीं चला पाते। तब तुम्हें पता चलेगा कि यह अन्तर मनुष्य के ही कारण है उसकी उपस्थिति और उसक्रे व्यक्तित्व के कारण है।

यदि मानव-जाति के बड़े बड़े नेताओं की बात ली जाय, तो हमें सदा यही दिखायी देगा कि उनका व्यक्तित्व ही उनके प्रभाव का कारण था अब प्रार्चीन काल के महान् लेखकों व विचारकों को लो। सच पूछो तो, उन्होंने हमारे सम्मुख जितने असल और सच्चे विचार रखे हैं, अतीतकालीन लोकनायकों की जो रचनाएँ तथा पुस्तकें आज हमें उपलब्ध हैं, उनमें से प्रत्येक का मूल्यांकन करो। केवल मुट्ठी भर ही असल, नये तथा स्वतंत्र विचार अभी तक इस संसार में सोचे गये हैं। उन लोगों ने जो विचार हमारे लिये छोड़े हैं, उनको उन्हीं की पुस्तक में से पढ़ो तो वे हमें कोई दिग्गज नहीं प्रतीत होते, तथापि हम जानते हैं कि अपने समय में वे दिग्गज व्यक्ति थे। इसका कारण क्या है? वे जो बहुत बड़े प्रतीत होते थे, वह मात्र उनके सोचे हुये विचारों या उनकी लिखी हुई पुस्तकों के कारण नहीं था, और न उनके दिये हुये भाषणों के कारण ही था, वरन् किसी एक दूसरी ही बात के कारण, जो अब निकल गयी है, और वह है - उनका व्यक्तित्व। जैसा मैं पहले कह चुका हूँ, दो-तिहाई अंश व्यक्तित्व होता है और बाकी एक-तिहाई अंश होता है - मनुष्य की बुद्धि और उसके कहे हुये शब्द। सच्चा मनुष्य या उसका व्यक्तित्व ही वह वस्तु है, जो हम पर प्रभाव डालती है। कर्म तो हमारे व्यक्तित्व की बाह्य अभिव्यक्ति मात्र हैं। व्यक्ति होने पर कर्म तो होंगे ही - कारण के रहते हुये कार्य का आविर्भाव अवश्यम्भावी है। सारी शिक्षा, समस्त प्रशिक्षण का एकमेव उद्देश्य मनुष्य का निर्माण होना चाहिये। पर हम यह न करके केवल बहिरंग पर ही पानी चढ़ाने का प्रयत्न किया करते हैं। जहाँ व्यक्तित्व का ही अभाव है, वहाँ सिर्फ बहिरंग पर पानी चढ़ाने का प्रयत्न करने से क्या लाभ? सारी शिक्षा का ध्येय है  - मनुष्य का विकास। वह मनुष्य, जो अपना प्रभाव सब पर डालता है, जो अपने संगियों पर जादू-सा कर देता है, शक्ति का एक महान् केन्द्र है और जब वह मनुष्य तैयार हो जाता है, वह जो चाहे कर सकता है। यह व्यक्तित्व जिस वस्तु पर अपना प्रभाव डालता है, उसी को कार्यशील बना देता है।

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