ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 26 पाठक हैं |
आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
बीते ख्याल
बैठा था बीते ख्यालों में
हवा ने देकर जोर का थपेड़ा
जगा दिया उन ख्यालों से।
उठने पर कोसा मैंने
उस मासूम भोली हवा को
तूने मुझे क्यों जगा दिया
और याद करने लगा
उन सुन्दर बीते क्षणों को
रोने लगा सिर रख घुटने पे
टूटे स्वप्न को संजोता हुआ।
तभी हवा में जादू सा हुआ
उसने औरत का आकार लिया
उठाया सिर को हाथ से अपने
और मुझसे ये कहने लगी-
तू क्या सोचता है कवि
सपने केवल तू ही देखता है
मैं भी देखती हूं सलोने सपने
देखती-देखती चलती हूं
चलती हूं इसलिए क्योंकि
चलना मेरा काम है।
मगर स्वप्न में खोकर गहरी
या टकरा जाती हूं चट्टानों से
और बिखर जाते हैं वे सारे
या गिर किसी कुंए में मैं
हो जाती हूं अंधी
या फिर निर्लज्ज मैं
गुजरती हुई समुद्र से
बहा देती हूं समुन्द्र में
या ज्वाला फूंक देती है
उनको अपने ताप से
मैं फिर भी भूलकर उनको
आगे कदम बढ़ाती हूं
लेकर कोई दूसरा स्वप्न
फिर से खुश हो जाती हूं।
0 0 0
|