ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
अपनेपन का एहसास
न जाने क्यों इस भूमि में
एहसास है अपनेपन का।
कितनी दूर मैं घूम लिया हूं
लगता है सबकुछ अपना सा।
वही है धरती वही हरियाली
वहीं हैं लोग वही खुशहाली
गाते हैं राग-फाग लोग यहां के
आता है जब सावन मस्ताना।
न जाने क्यों इस भूमि में
एहसास है अपनेपन का।
मां के जैसी मुझे है प्यारी
वसुन्धरा की हरी हरियाली
थकान मिटाता गोद में सर रख
होता हूं जब थका-थका-सा।
न जाने क्यों इस भूमि में
एहसास है अपनेपन का।
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