लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605
आईएसबीएन :9781613015919

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

26 पाठक हैं

आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

मैली साड़ी वाली

मटमैली-सी सफेद साड़ी में
रोती बिलखती अश्रु बिखेरती
पास वह औरत एक दिन आई
आकर कहने लगी वो युवती

मानती हूं तुम भी हो एक कवि
मगर तुम जो लिखते हो कविता
उनमें मेरा वजूद दिखाई नहीं देता
क्योंकि तुम्हारे शब्दों में भी
वही गंध है जो एक विदेशी
साहित्य में मैंने देखी है।

तभी तो मुझे खतरा है
आने वाले समय में
मेरा चेहरा हो जाएगा धुंधला
लोग जानेंगे मेरे नाम को
मगर मेरी पहचान न होगी
क्योंकि मेरे अन्दर भी-----
विदेशी शब्दों की मिलावट होगी
तभी तो मैं रोती हूं चिल्लाती हूं
हर कवि के पास जाती हूं।

हाथ जोड़ विनती करती हूं
बचा लो मेरी लाज को
विदेशी भाषा आकर मेरे दामन को
अपनी कालिख से पोत जाती है।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book