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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


दिन-भर घूमने से लिली को इतनी जोर की भूख लग आई थी कि आते ही उसने माँ से नाश्ता माँगा और जब अपने आप अलमारी से निकालने लगी तो माँ ने टोका कि खुद खा जाएगी तो तेरे ससुर क्या खाएँगे तो हँस के बोली, 'अरे उन्हें मैं बचा-खुचा अपने हाथ से खिला दूँगी। पहले चख तो लूँ, नहीं बदनामी हो बाद में!' इतने में मालूम हुआ वे लोग आ गए तो झट से वह नाश्ता आधा छोड़ कर अंदर गई। कम्मो ने उसे साड़ी पहनाई, उसे सजाया-सँवारा लेकिन उसे भूख इतनी लगी थी कि उन लोगों के सामने जाने के पहले वह फिर बैठ गई और खाने लगी, यहाँ तक कि कम्मो ने जबरदस्ती उसके सामने से तश्तरी हटा ली और उसे खींच ले गई।

दिन-भर खुली हवा में घूमने से और पेट भर कर खाने से सुबह लिली के चेहरे पर जो उदासी छाई थी वह बिलकुल गायब हो गई थी और उन लोगों को लड़की बहुत पसंद आई और पिछले दिन शाम को उसके जीवन में जो जलजला शुरू हुआ था वह दूसरे दिन शाम को शांत हो गया।

इतना कह कर माणिक मुल्ला बोले, 'और प्यारे बंधुओ! देखा तुम लोगों ने! खुली हवा में घूमने और सूर्यास्त के पहले खाना खाने से सभी शारीरिक और मानसिक व्याधियाँ शांत हो जाती हैं अत: इससे क्या निष्कर्ष निकला?'

'खाओ, बदन बनाओ!' हम लोगों ने उनके कमरे में टँगे फोटो की ओर देखते हुए एक स्वर में कहा।

'लेकिन माणिक मुल्ला!' ओंकार ने पूछा, 'यह आपने नहीं बताया कि लड़की को आप कैसे जानते थे, क्यों जानते थे, कौन थी यह लड़की?'

'अच्छा! आप लोग चाहते हैं कि मैं कहानी का घटनाकाल भी चौबीस घंटे रखूँ और उसमें आपको सारा महाभारत और इनसाइक्लोपीडिया भी सुनाऊँ! मैं कैसे जानता था इससे आपको क्या मतलब? हाँ, यह मैं आपको बता दूँ कि यह लीला वही लड़की थी जिसका ब्याह तन्ना से हुआ था और उस दिन शाम को महेसर दलाल उसे देखने आनेवाले थे!'

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