ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
अनध्याय
इस कहानी ने वास्तव में हम लोगों को प्रभावित किया था। गरमी के दिन थे। मुहल्ले के जिस हिस्से में हम लोग रहते उधर छतें बहुत तपती थीं, अत: हम सभी लोग हकीम जी के चबूतरे पर सोया करते थे।
रात को जब हम लोग लेटे तो नींद नहीं आ रही थी और रह-रह कर जमुना की कहानी हम लोगों के दिमाग में घूम जाती थी और कभी कलकत्ते की अरगंडी और कभी बेसन के पुए की याद करके हम लोग हँस रहे थे।
इतने में श्याम भी हाथ में एक बँसखट लिए और बगल में दरी-तकिया दबाए हुए आया। वह दोपहर की मजलिस में शामिल नहीं था अत: हम लोगों को हँसते देख उत्सुकता हुई और उसने पूछा कि माणिक मुल्ला ने कौन-सी कहानी हम लोगों को बताई है। जब हम लोगों ने जमुना की कहानी उसे बताई तो आश्चर्य से देखा गया कि बजाय हँसने के वह उदास हो गया। हम लोगों ने एक स्वर से पूछा कि 'कहो श्याम, इस कहानी को सुन कर दुखी क्यों हो गए? क्या तुम जमुना को जानते थे?' तो श्याम रुँधे हुए गले से बोला, 'नहीं, मैं जमुना को नहीं जानता, लेकिन आज नब्बे प्रतिशत लड़कियाँ जमुना की परिस्थिति में हैं। वे बेचारी क्या करें! तन्ना से उसकी शादी हो नहीं पाई, उसके बाप दहेज जुटा नहीं पाए, शिक्षा और मन-बहलाव के नाम पर उसे मिलीं 'मीठी कहानियाँ', 'सच्ची कहानियाँ', 'रसभरी कहानियाँ' तो बेचारी और कर ही क्या सकती थी। यह तो रोने की बात है, इसमें हँसने की क्या बात! दूसरे पर हँसना नहीं चाहिए। हर घर में मिट्टी के चूल्हे होते हैं', आदि-आदि।
श्याम की बात सुन कर हम लोगों का जी भर आया और धीरे-धीरे हम लोग सो गए।
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