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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


'क्यों? यह तो बिलकुल स्पष्ट है।' माणिक मुल्ला ने कहा, 'अगर हरेक के घर में गाय होती तो यह स्थिति कैसे पैदा होती? संपत्ति की विषमता ही इस प्रेम का मूल कारण है। न उनके घर गाय होती, न मैं उनके वहाँ जाता, न नमक खाता, न नमक अदा करना पड़ता।'

'लेकिन फिर इससे सामाजिक कल्याण के लिए क्या निष्कर्ष निकला?' हम लोगों ने पूछा।

'बिना निष्कर्ष के मैं कुछ नहीं कहता मित्रो! इससे यह निष्कर्ष निकला कि हर घर में एक गाय होनी चाहिए जिसमें राष्ट्र का पशुधन भी बढ़े, संतानों का स्वास्थ्य भी बने। पड़ोसियों का भी उपकार हो और भारत में फिर से दूध-घी की नदियाँ बहें।'

यद्यपि हम लोग आर्थिक आधारवाले सिद्धांत से सहमत नहीं थे पर यह निष्कर्ष हम सबों को पसंद आया और हम लोगों ने प्रतिज्ञा की कि बड़े होने पर एक-एक गाय अवश्य पालेंगे।

इस प्रकार माणिक मुल्ला की प्रथम निष्कर्षवादी प्रेम-कहानी समाप्त हुई।

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