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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।

दूसरी दोपहर


घोड़े की नाल
अर्थात किस प्रकार घोड़े की नाल सौभाग्य का लक्षण सिद्ध हुई?

दूसरे दिन खा-पी कर हम लोग फिर उस बैठक में एकत्र हुए और हम लोगों के साथ श्याम भी आया। जब हम लोगों ने माणिक मुल्ला को बताया कि श्याम जमुना की कहानी को सुन कर रोने लगा था तो श्याम झेंप कर बोला, 'मैं कहाँ रो रहा था?' माणिक मुल्ला हँसे और बोले कि 'हमारी जिंदगी में जरा-सी पर्त उखाड़ कर देखो तो हर तरफ इतनी गंदगी और कीचड़ छिपा हुआ है कि सचमुच उस पर रोना आता है। लेकिन प्यारे बंधुओ, मैं तो इतना रो चुका हूँ कि अब आँख में आँसू आता ही नहीं, अत: लाचार हो कर हँसना पड़ता है। एक बात और है - जो लोग भावुक होते हैं और सिर्फ रोते हैं, वे रो-धो कर रह जाते हैं, पर जो लोग हँसना सीख लेते हैं वे कभी-कभी हँसते-हँसते उस जिंदगी को बदल भी डालते हैं।'

फिर खरबूजा काटते हुए बोले, 'हटाओ जी इन बातों को। लो आज जौनपुरी खरबूजे हैं। इनकी महक तो देखो। गुलाब मात है। क्या है श्याम? क्यों मुँह लटकाए बैठे हो? अजी मुँह लटकाने से क्या होता है! मैं अभी तुम्हें बताऊँगा कि जमुना का विवाह कैसे हुआ?'

हम लोग तो यह सुनना ही चाहते थे अत: एक स्वर में बोल उठे, 'हाँ-हाँ, आज जमुना के विवाह की कहानी रहे।' पर माणिक मुल्ला बोले, 'नहीं, पहले खरबूजे के छिलके बाहर फेंक आओ।' जब हम लोगों ने कमरा साफ कर दिया तो माणिक मुल्ला ने सबको आराम से बैठ जाने का आदेश दिया, ताख पर से घोड़े की पुरानी नाल उठा लाए और उसे हाथ में ले कर ऊपर उठा कर बोले, 'यह क्या है?'

'घोड़े की नाल।' हम लोगों ने एक स्वर में उत्तर दिया।

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