ई-पुस्तकें >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
120. तुम सदैव कह सकते हो कि प्रतिमा ईश्वर है। केवल यही सोचने की भूल से बचना कि ईश्वर प्रतिमा है।
121. एक बार स्वामीजी से होटेनटोट (दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका की एक विलीयमान खानाबदोश पशुपालक जाति।) लोगों की फेटिश-पूजा (फेटिश का अर्थ है कोई वस्तु जिसको प्राप्त कर लेने पर उसमें रहनेवाली आत्मा पर अधिकार मिल जाता है। विभिन्न आदिम जातियों में फेटिश के रूप में विविध वस्तुओं की पूजा की जाती है।) (जड़-पूजा) की भर्त्सना करने की प्रार्थना की गयी। उन्होंने उत्तर दिया, ''मैं नहीं जानता कि फेटिश-पूजा क्या है!'' तब एक ऐसे विषय का भीषण चित्र तत्काल उनके सामने रखा गया, जिसे बारी-बारी से पूजा, पीटा और धन्यवाद दिया जाता था। वे चिल्ला उठे, ''ऐसा तो मैं भी करता हूँ!'' दीन और अनुपस्थित जनों के प्रति इस अन्याय पर क्रोध से लाल होकर एक क्षण बाद फिर बोले, ''क्या तुम नहीं देखते, क्या तुम नहीं देखते कि उसमें कोई फेटिश-पूजा नहीं है' ओह, तुम्हारा हृदय पथरा गया है, इसी कारण तुम नहीं देखते कि बच्चा ठीक करता है! बच्चा सभी जगह सजीव व्यक्ति देखता है। ज्ञान हमसे वह बालदृष्टि छीन लेता है। परन्तु अन्त में उच्चतर ज्ञान द्वारा, हम फिर उसे प्राप्त करते है। वह चट्टानों, डण्डी, पेड़ों आदि में जीवनशक्ति देखता है! और क्या उनके पीछे जीवनशक्ति नहीं है? यह प्रतीकवाद है, फेटिशपूजन नहीं! क्या तुम नहीं समझ सकते?''
122. एक दिन उन्होंने सत्यभामा के त्याग की कथा बतायी और बताया कि किस प्रकार एक कागज के टुकड़े के ऊपर 'कृष्ण' लिखकर तराजू के एक पलड़े पर रखने पर दूसरी ओर के पलड़े पर स्वयं कृष्ण को पैर रखना पड़ा। उन्होंने कहा, ''सनातन हिन्दू धर्म श्रुति यानी शब्द को सब कुछ मानता है, 'वस्तु' तो केवल पूर्वस्थित एवं शाश्वत् प्रत्यय की एक क्षीण अभिव्यक्ति मात्र है। अत: ईश्वर का नाम सब कुछ है; स्वयं ईश्वर भी अनन्त मानस के उस प्रत्यय की अभिव्यक्ति है। तुम्हारे व्यक्तित्व से तुम्हारा नाम अनन्तगुना अधिक पूर्ण है। ईश्वर का नाम ईश्वर से बड़ा है। अपनी वाणी के प्रति सतर्क रहो!''
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