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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    शुद्ध बनना औऱ दूसरों की भलाई करना ही सब उपासनाओं का सार है। जो गरीबों, निर्बलों और पीडितों में शिव को देखता है, वही वास्तव में शिव का उपासक है; पर यदि वह केवल मूर्ति में ही शिव को देखता है, तो यह उसकी उपासना का आरम्भ मात्र है।

•    नि:स्वार्थता ही धर्म की कसौटी है। जो जितना अधिक नि:स्वार्थी है, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक औऱ शिव के समीप है.....। और वह यदि स्वार्थी है, तो उसने चाहे सभी मन्दिरों में दर्शन किये हों, चाहे सभी तीर्थों का भ्रमण किया हो, चाहे वह रँगे हुए चीते के समान हो, फिर भी वह शिव से बहुत दूर है।

•    प्रेम – केवल प्रेम का ही मैं प्रचार करता हूँ, औऱ मेरे उपदेश वेदान्त की समता और आत्मा की विश्वव्यापकता - इन्हीं सत्यों पर प्रतिष्ठित हैं।

•    पहले रोटी औऱ फिर धर्म। सब बेचारे दरिद्री भूखों मर रहे हैं, तब हम उनमें व्यर्थ ही धर्म को ठूँसते हैं। किसी भी मतवाद से भूख की ज्वाला शान्त नहीं हो सकती....। तुम लाखों सिद्धान्तों की चर्चा करो, करोड़ों सम्प्रदाय खड़े कर लो, पर जब तक तुम्हारे पास संवेदनशील हृदय नहीं है, जब तक तुम उन गरीबों के लिए वेदों की शिक्षा के अनुरूप तड़प नहीं उठते, जब तक उन्हें अपने शरीर का ही अंग नहीं समझते, जब तक यह अनुभव नहीं करते कि तुम औऱ वे-दरिद्र और धनी, सन्त और पापी-सभी उस एक असीम पूर्ण के, जिसे तुम ब्रह्म कहते हो, अंश हैं, तब तक तुम्हारी धर्म-चर्चा व्यर्थ है।

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