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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


प्रेम और नि:स्वार्थता

•    नि:स्वार्थता अधिक लाभदायक है, किन्तु लोगों में उसका अभ्यास करने का धैर्य नहीं है।

•    उच्च स्थान पर खड़े होकर और हाथ में कुछ पैसे लेकर यह न कहो-“ऐ भिखारी, आओ यह लो।” परन्तु इस बात के लिए उपकार मानो कि तुम्हारे सामने वह गरीब है, जिसे दान देकर तुम अपने आप की सहायता कर सकते हो। पानेवाले का सौभाग्य नहीं, पर वास्तव में देनेवाले का सौभाग्य है। उसका आभार मानो कि उसने तुम्हें संसार में अपनी उदारता औऱ दया प्रकट करने का अवसर दिया और इस प्रकार तुम शुद्ध औऱ पूर्ण बन सके।

•    दूसरों की भलाई करने का अनवरत प्रयत्न करते हुए हम अपने आपको भूल जाने का प्रयत्न करते हैं। यह अपने आपको भूल जाना एक ऐसा बड़ा सबक है, जिसे हमें अपने जीवन में सीखना है। मनुष्य मूर्खता से यह सोचने लगता है कि वह अपने को सुखी बना सकता है, पर वर्षों के संघर्ष के पश्चात् अन्त में वह कहीं समझ पाता है कि सच्चा सुख स्वार्थ के नाश में है और उसे अपने आपके अतिरिक्त अन्य कोई सुखी नहीं बना सकता।

•    स्वार्थ ही अनैतिकता और स्वार्थहीनता ही नैतिकता है।

•    स्मरण रखो, पूरा जीवन देने के लिए ही है। प्रकृति देने के लिए विवश करेगी; इसीलिए अपनी खुशी से ही दो....। तुम संग्रह करने के लिये ही जीवन धारण करते हो। मुट्ठी-बँधे हाथ से तुम बटोरना चाहते हो, पर प्रकृति तुम्हारी गर्दन दबाती है और तुम्हारे हाथ खुल जाते हैं। तुम्हारी इच्छा हो या न हो, तुम्हें देना ही पड़ता है। जैसे ही तुम कहते हो, ‘मैं नहीं दूँगा’, एक घूँसा पडता है और तुम्हें चोट लगती है। ऐसा कोई भी नहीं है, जिसे अन्त में सब कुछ त्यागना न पड़े।

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