लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> राख और अंगारे

राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598
आईएसबीएन :9781613013021

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

299 पाठक हैं

मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

रेखा रमेश की बातें सुनकर फफककर रो पड़ी। अविरल अश्रुधारा ने रमेश को विचलित कर दिया। बोला-’रेखा क्या तुम्हें मेरी किसी बात से दुःख हुआ है? विश्वास रखो, जो कुछ मैंने कहा है, साफ दिल से...।’

रेखा ने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा-’तुम देवता हो रमेश! मैं तुमकोँ पाकर अपने को भाग्यशाली समझती, पर जिसका भाग्य ही खोटा हो, जिसके भाग्य में दुःख उठाना ही हो तो उसका कोई क्या करे?'

इसी समय राणा साहब, जो उनके वार्त्तालाप के बीच बजार चले गए थे, लौट आए। आते ही आवाज लगाई-’रेखा...'

‘आई, अभी आई...' और रमेश को नमस्ते कर बाबा के पास आ गई। दोनों की बातचीत का यहीं पटाक्षेप हो गया।

'यह ले... रोज़-रोज कहती थी कि चूहों ने आफत मचा रखी है... कोई उपाय कीजिए, सो आज उपाय ले आया।'

रेखा ने डिबिया लेकर, उस पर लगा लेबिल पढ़ा। वह चूहा मारने की दवा थी।' ‘देखो, थोड़ी सावधानी रखना - विष भयानक है - आदमी के भी प्राण उसी तरह ले सकता है, जिस तरह चूहे के।'

'इसे किस प्रकार प्रयोग में लाया जाएगा?'

'गुंथे हुए पांव भर आटे में रत्ती भर मिला दो। फिर घर के कोने-कोने में गोलियां बनाकर रख दो। रखने के बाद अच्छी तरह साबुन से हाथ धो लेने चाहिए।' कहकर बाबा बाहर वैठक में चले गए।

जैसे ही रेखा, डिबिया अलमारी में बन्द कर घूमी कि अपने ही पीछे मां को खड़ी देख अचकचा गई।

‘क्या है मां? ’

‘बैठ, बताती हूं! ’

रेखा जब स्थिर होकर बैठ गई तब श्रीमती राणा बोलीं - ‘यह तो तू जान गई होगी कि बाबा ने तेरी शादी रमेश के साथ पक्की कर दी है।'

'लेकिन कहने का मतलव क्या है?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book