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राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598
आईएसबीएन :9781613013021

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मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

रेखा रमेश की अन्तिम बात सुन लज्जा से लाल हो गई। थोड़ी देर तक सिर ऊंचा न कर सकी। पर कहीं रमेश और अधिक चुटकी न ले, इस डर से तुरन्त लज्जा को झाड़-पोंछकर, गर्दन ऊंची कर बोली-’सुझाव के लिए धन्यवाद! आप तो हाथ धोकर पीछे पडे ही हैं, फिर बंधन से किस प्रकार भाग सकती हूं, पर इस समय मैं कहीं दूर जाना चाहती हूं जहां शांति मिले। वह पहले मुस्कराई, हंसी और फिर तुरन्त गम्भीर बन गई।

'इससे तो मैं भी सहमत हूं’’

'परन्तु जाऊं कहां? कौन है मेरा, जो मेरी इच्छा की पूर्ति करेगा?'

'उत्तर सुनकर कहीं कल की तरह भाग खड़ी हुईं, तब? ’

‘विश्वास कीजिए, ऐसी अशिष्टता अब न होगी।'

'तो मेरे घर चलो, तुम्हारी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करूंगा।'

‘परन्तु आप जैसे महान के साथ रहकर मैं आपकी महानता पर धव्बा लगा बैठूंगी, दुःख की गहरी खाई में ले कूदूंगी आपको।'

'मेरे समक्ष रेखा, तुम अबूझ पहेली-सी हो जाती हो। तुम्हारे अन्तर में मैं किसी अज्ञात पीड़ा का अनुभव करता हूं। मैं नहीं देखना चाहत तुम्हारी मुखाकृति पर मलीनता, देखना चाहता हूं चितांओं से मुक्त हंसी! मैं क्या चाहता हूं, इसको अब भी तुम न समझ सको तो मेरा दुर्भाग्य है।'

'नहीं-नहीं, ऐसा न कहिए, आपका मूल्यांकन मैं तब नहीं कर सकी थी, अब यहां आकर आपको खूब अच्छी तरह समझ- बूझ लिया है। और इसी अन्तर्द्वन्द्व में घुटी जा रही हूं।’

'फिर समझ-बूझकर भी यह भाग-दौड़ क्यों?'

'क्या बताऊं रमेश!’ वाक्य पूरा न कर उससे सिर नीचा कर लिया।

रमेश को कुछ-कुछ सन्देह तो पहले से अवश्य था, पर उसने उसे कोई महत्व नहीं दिया था। आज उसे मालूम पड़ा जैसे उसके अन्तर में किसी के लिए तड़पन है - पाने की प्यास है। वह रेखा को प्यार करता है, पर उसने कभी रेखा पर अपना प्यार प्रकट नहीं किया। आज वह भी खुल जाना चाहता था। उसने सामने बैठी रेखा की झुकी ठुड्डी को ऊपर उठाते हुए कहा- 'रेखा! तुम शायद जानती होगी कि तुम्हारे और मेरे पिता ने हमारे सम्बन्ध को स्वीकार किया है। मैं तुम्हें अनजाने में, बचपन से प्यार करता रहा हूं। तुमने मेरे उस प्यार को कभी समझने का प्रयत्न नहीं किया। रेखा, मैं संकीर्ण हृदय का व्यक्ति नहीं पारस्परिक द्वेष से मैं कोसों दूर भागता हूं। मुझे कोई दुःख कोई कष्ट न होगा यदि तुम सच्ची बात प्रकट कर दोगी। प्रेमी के नाते नहीं, एक मित्र के नाते मैं तुम्हारा साथ दूंगा।'

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