लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> राख और अंगारे

राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598
आईएसबीएन :9781613013021

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

299 पाठक हैं

मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

आठ

रेखा सीने से पुस्तकें लगाए कॉलेज से लौट रही थी कि पीछे से मोहन लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ आया और उसके कंधे पर हाथ रख दिया। वह कांप गई। मुड़कर देखते ही बोली- ‘मैंने सोचा न जाने कौन है?'

'कोई और भी हो सकता है क्या? ’

'तुम जैसे बहुतेरे दिलफेंक राह चलते ऐसी हरकतें कर बैठते हैं।'

'पर मैं सोना कसौटी पर रखकर ही हाथ रखता हूं।'

'लेकिन परखने के वाद जब सोने की असलियत सामने आती है तो वगलें झांकने लगते हैं।'

'यह तुम मेरी निर्धनता का उपहास कर रही हो।'

'बस, सोच लिया न कुछ का कुछ, अरे जरा दिल के भीतर पहुंचने की कोशिश किया करो।'

'कोशिश तो बहुत करता हूं पर कभी-कभार तुम्हारी ऊंचाई देखकर हृदय दहल जाता है।'

'यदि ऊचाई स्वयं ही झुक चुकी हो तो फिर क्या डर!' ‘चलो, सामने रानी बाग में बैठकर बातें करें। चारों ओर आंखें ही आंखें हैं।'

'फिर कभी.. बाबा आने ही वाले होंगे।'

'बाबा... या तुम्हारे नए अतिथि, कहो कब जाना है उसे?'

'इसी रविवार को, और हां, पुलिसवालों ने उस हार का क्या किया?

'उस झगड़े में मैं भी आ फंसा हूं। वह इसलिए कि हार मैंने ही बेचा था। परन्तु पूर्ण आशा और विश्वास है कि फैसला मेरे ही पक्ष में होगा! ‘और यदि न हुआ तो..।'

'आशा पर तो सारा संसार टिका है रेखा! अच्छा, छोड़ो इन बातों को। तुमसे एक वात कहनी थी।'

'क्या?'

'परसों रात तुम्हें अपने साथ थियेटर ले जाना चाहता हूं।' ‘न बाबा, मैं न जा सकूंगी।'

'आपत्ति का तो कोई कारण नहीं, तुम मुझे वहां मिल जाना।'

'मेरे बाबा को यह पसन्द नहीं.. वह ऐसे स्थान पर जाने के लिए कमी इजाजत नहीं देंगे।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai