ई-पुस्तकें >> राख और अंगारे राख और अंगारेगुलशन नन्दा
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मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।
सोलह
यहां से हटते ही उसकी दृष्टि मेज पर रखी चूहों को मारने वाली उस दवा पर पडी, जिसे थोड़ी देर पहले वह गले में उतार कर सदा के लिए सो जाना चाहती थी। अकस्मात् ही उसके मस्तिप्क में कोई विचार कौंध गया। उसके मुख पर प्रसन्नता की एक विचित्र रेखा खिंच आई।
उसने शम्भू को बुलाकर मैदे की थोड़ी-सी लेई तैयार कर- वाई। जब शम्भू उसे रखकर वाहर गया, तो रेखा ने वह सब विष उस लेई में उडेलकर उसे अच्छी प्रकार मिला दिया। जब लेई में विष घुल-मिल गया तो उसने एक खाली लिफाफा लेकर उसके दोनों ओर हल्की-सी लेई का लेप दे दिया।
न जाने कितनी देर तक उस कमरे में बैठी वह मोहन की प्रतीक्षा करती रही। बाबा आये, मां आऐ परन्तु सबको एक ही उत्तर मिला,’मुझे भूख नहीं।'
दिन की सुनहरी धूप रंग बदलती हुई सांझ के मटियाले में परिवर्तित हो गई।
सड़क पर ऊंचे गिरजे की घड़ी ने जैसे ही टन-टन दस वजाये, रेखा कमरे का किवाड़ बन्द कर एक कोने में सिमटकर खड़ी हो गई। घर के सब व्यक्ति नीद में खो चुके थे। कमरे में हर ओर अन्धेरा था। रोशनदान के बाहर से धुंधली रोशनी कमरे की दीवारों पर पड़ रही थी, वह छिपी दृष्टि से बार-बार उस उजाले को देख लेती। भय से उसने अपनी सांस तक रोक रखी थी। कमरे की चुप्पी में केवल उसके मन की धड़कन मात्र सुनाई दे रही थी।
लम्वे-लम्बे डग उठाती एक छाया दीवार पर छनकर आते हुए उजाले में प्रकट हुई। वह रोशनदान की ओर बढ़ी आ रही थी। इस सुनसान रात में आने वाले के पांव की चाप सुनाई दे रही थी।
वह रोशनदान के पास आकर रुक गया। नीचे झुककर वहां रखा हआ लिफाफा उठा लिया और सड़क पर बिजली के खम्भे की ओर जाने लगा। रेखा ने मेज पर चढ़कर रोशनदान से बाहर झांका। वह मोहन ही था।
अपने वचनानुसार उसके लिफाफे को कई बार चूमा और फिर लैम्प पोस्ट के उजाले में पढ़ने लगा। पत्र पढ़कर उसे ऐसा मालूम हुआ जैसे आज की रेखा और कल की रेखा में महान अन्तर हो गया है। आज उसमें तनाव के स्थान पर झुकाव था-- घृणा के स्थान पर प्यार था। इस आकस्मिक परिवर्तन को वह तिकड़मबाज भी न समझ सका। उसने इसे समझा, सिर्फ औरत की कमजोरी। उसने अपने को विश्वस्त करने के लिए बार-बार पत्र पढा। पढ़कर उसने चिट्ठी लिफाफे में रख दी। उसने देखा लिफाफे में अभी लस है। उसने दो-चार बार इस कोने से उस कोने तक जीभ फेरी और बन्द होने वाले भाग को चिपका दिया।
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