लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> राख और अंगारे

राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598
आईएसबीएन :9781613013021

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

299 पाठक हैं

मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

'बाजार, विवाह के लिए कपड़े-गहने खरीदने हैं। मां-बेटी पसन्द कर लेना। फिर मत कहना कि मैंने मनमानी की।’

'परन्तु बाबा..।’

'क्या है?'

'तो क्या आप निश्चय कर चुके हैं? ’

'इस विषय में मुझे तुमसे परामर्श लेना आवश्यक है क्या? तुम्हें अपने बाबा पर विश्वास नहीं?'

'जी...! ’

'बेटी रेखा! जिस दुनियां में पग-पग पर धोखा-फ़रेब, मनमानी, लूट-खसोट हो, उस दुनियां से जो बच-बचाकर साफ निकल आता है, वही खरा इंसान है। तुम वेखबर उसी गलत मार्ग पर बढ़ी जा रही हो। जरा होश में आओ, भविष्य का विचार कर स्वयं को परेशान न करो.. मैं कोई अन्याय नहीं कर रहा हूं... तुम्हारे लिए आकाश से तारे तोड़कर लाया हूं... रत्न चुनकर लाया हूं.. जाओ, तैयार हो जाओ... यह मेरा अन्तिम निश्चय है।

रेखा बिना कुछ कहे दूसरे कमरे में चली गई और बड़बड़ाई-- 'मेरी पसन्द.. सब मेरी पसन्द... उसे लगा जैसे कमरा कपडों और गहनों से भरा पड़ा है और उसे बलपूर्वक उन्हें पहना कर दुल्हन बनाने का उपक्रम हो रहा है।’

उसी समय रोशनदान के सामने वाले फुटपाथ पर हजारों चलते हुए लम्बे-लम्बे पग दीवार पर अपनी छाया फेंकने लगे। रेखा स्वयं बडबडा उठी,’मोहन अब तुम कहो, मैं बाबा से कैसे और क्या कहूं...?'

थोड़े ही समय में मां-बेटी तैयार होकर राणा साहब के संग बाजार चल पड़ीं। वह निर्जीव-सी चलती जा रही थी। मां-बाप ने जो कुछ पसन्द किया, उसने हां में हां मिला दिया था - जैसे उसकी निजी कोई पसन्द न हो।

उसकी पसन्द की कोई चीज थी तो वह केवल मोहन था। सत्य चाहे असत्य... वह प्रेम की भावुकता में बहती हुई थमी ओर खिंची चली जा रही थी। वह बस इतना ही जानती थी कि जिसे जीवन में एक बार चुन लिया, वही जीवन-मृत्यु का साथी बन गया। उसकी आंखोँ के सम्मुख, संसार-मंच पर प्रेम-नाटक के सम्मुख अभिनेता बारी-बारी से आने लगे। जिन्होंने मृत्यु को गले लगा लिया परन्तु अपने मार्ग से विच- लित नहीं हुए। उसने ऐसी कितनी ही कथाएं पढ़ रखी थीं, इनमें से एक भी ऐसा न था जिनके मार्ग में माता-पिता विघ्न बनकर न खड़े हो गए हो...।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book