भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
|
7 पाठकों को प्रिय 185 पाठक हैं |
संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
हवा गवाह है
नहीं फटी
धरती,
न ही टूटा आसमान
जब,
मंदिर पे-
लाश बना दिया गया
'राम',
मस्जिद पे-
क़त्ल हुआ
'मोहम्मद',
गिरजा पे ही
टँगी मिली
'मरियम' की नंगी लाश,
गुरुद्वारे पे-
माथा टेकते सो गया
'गोविन्द',
और
लाल होता रहा
सरोवर का 'अमृत',
देखते रहे टकटकी लगाए
धरती / आकाश / मन्दिर / मस्जिद / गुरुद्वारा
और
कोठी वाले ‘धर्मात्मा’।
बोलता रहा
अकेला ही
छत के नीचे
चिरनिद्रा में पड़ी
माँ को
सोया समझकर
तोतली जुबान से
आक्रोश में जगाता
घुटनों के बल रेंगता
अधनंगा बच्चा।
|