भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
चीख़ना मना है !
तुम ,
अपनी कमज़ोर पीठ पर
पहाड़-सा बोझ
ढोते रहो
मगर
उफ़, बिलकुल न करना
मेरे दोस्त!
न ही
सरक जाने पर
बोझ के
मेरे हाथ का इन्तज़ार करना
तुम,
दर्द से छटपटाना
मगर
भूलकर भी
कराहना मत।
न ही
गड्ढों के बीच झाँकती
आँखों को
नमकीन पानी से नहलाना।
मैं भी
नहीं सहला पाऊंगा
तुम्हारी पीठ
मुझे माफ करना।
और मेरे दोस्त
भूख लगने पर
रोटी के लिए
चिल्लाना भी मत,
शोर के बीच
तुम्हारी-
मरियल आवाज
दम तोड़ देगी।
तब,
आक्रोश में-
अपने हाथ
हवा में मत लहराना
क्योंकि -
तुम्हें झुंझलाता देख
शायद मैं ही (?)
डपट दूँ तुम्हें,
मगर, तब भी,
तुम चीखना मत,
क्योंकि-
यह शहर
'अमन पसन्द' लोगों का है
जिन्हें
शोर से सख्त नफ़रत है!
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