भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
अलग बात है !
ज़िन्दगी, जीते रहना
अलग बात है
और
एहसासों में जान फूँकना अलग,
वैसे ही
जैसे-
मन में संवेदना का होना
और
उसको दम तोड़ते
ख़ामोशी से देखना।
ज़िन्दगी-
तुम भी जी रहे हो
मैं भी
लेकिन-
संवेदनाओं का
अबोध शिशु,
तुम्हारी गोद में
बिलख रहा है कब से
और
मेरे हाथ जकड़े हैं
मर्यादा की डोर से !
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