भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
मन की कह लें
साथ-साथ
दूर तलक
बहुत कुछ बुन लिए
आओ, अब मन की कह लें।
पांखुरी-पांखुरी
बहुत फूल बिखरा लिए
आओ, अब उन्हें दुलार लें।
दूर-दूर
बहुत दिन रह लिए
आओ अब दूरियाँ तय कर लें।
रेत में, रेत के-
घर बहुत गिरा लिए
आओ, अब इक घर बसा लें!
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