भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
तटबंध
नदी के
दो तटबंधों से हम
उस पार
तुम,
इस पार मैं।
यूं, हम
कतई पराए नहीं हैं
क्योंकि-
जब-जब
रोई है नदी
हम दोनों की ही
आँखें भीगीं,
नदी
जब भी उफनाई
बाढ़ में-
मैं भी खो गया
तुम भी
लेकिन-
पता नहीं क्यों
अपना दर्द
ख़ामोशी से
पीते रहे हम।
पास बहती हवा
फुसफुसाकर
कानों में कह जाती है
अक्सर-
कि नदी किनारे
ज़िन्दगी,
इसी तरह साँस लेती है!
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