भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
तुम्हारे नाम
मैं,
लौटूँगा नहीं
बिना तुम्हें पाये
मेरी मंजिल!
मैं,
जानता हूँ
हर लक्ष्य की तरह
ज़रा मुश्किल सा है
तुम्हें पाना
लेकिन
मैं
विचलित नहीं होऊँगा
पैरों मैं पड़े छालों,
सूखे,
सहमे होठों
और
अंतहीन सी लगती राह से।
क्योंकि-
एक दिन ज़रुर आएगी
सुनहरी सुबह
जब
मेरे अथक पांव
जा पहुँचेंगे
तुम तक!
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