भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
खण्डहर सा मैं
किसी महल के
खण्डहर सा
मैं,
जिसका अतीत
जानने की कुलबुलाहट
मन में दबाए
कोई मुसाफिर
साथ बिताने
कुछ लम्हे के बाद
उसकी दरकी हुई
दीवार पे-
हौले से अपना नाम खरोंच कर
अपनी राह चल देता है
सब कुछ भूलकर।
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