भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
वक्त आदमी नहीं
वक्त
आदमी नहीं
चट्टान सा होता है।
उस दिन
ज़िन्दगी,
एक मौत बचानें के लिए
ज़िन्दा दफन हो गयी
छाती में-
किसी की याद की तरह।
मगर-
वह
नहीं रुका
चलता रहा
बचपन, जवानी और बुढ़ापे की तरह !
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