भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
दर्द अपना
सोचा था
कविता के तख़्त पर बैठकर
अपना भी रच डालूँ
इतिहास,
लेकिन
लिखने बैठा तो
कविता, इतिहास की गोद में
जा बैठी
कागज ने हवा का पल्लू थामा
और
कलम से समझौता कर लिया
स्याही ने।
फिर-
इतिहास के समक्ष.
अतीत ने
ख़ामोशी से
गर्दन झुका ली
शायद इतना ही था
अपना इतिहास।
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