भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
खबरची
अखबार का
खबरची
खुद में है
एक बड़ी खबर!
हर सुबह घर से निकलता है
यंत्रचालित सा
उतारने
कागज के टुकड़ों पे-
धड़कनें शहर की कि-
नंदू को नहीं दी
साहूकार ने
महीने की पगार,
लंबी मोटर ने
देखा नहीं
बैसाखी पे सड़क पार करते
अनाथ बूढ़े को,
आज फिर बंद रहा
मिल का भोंपू
और
आक्रोश में उठे रहे
सैकड़ों मुट्ठी बंद हाथ,
आज फिर-
सड़क किनारे मिली
फूले पेट वाली
नंगी लाश।
लेकिन
देर रात
बोझिल मन से घर लौटते
कचोटता है उसका मन
कि आज भी
क्यों नहीं लिख पाया
अपनी आपबीती
हमेशा की तरह!
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