भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
शिल्पकार
तुम,
सचमुच महान हो
शिल्पकार !
तुम्हारे हाथ
नहीं दुलारते बच्चों को
न ही गूँथते हैं फूल
अर्धांगिनी के केशों में
बस,
उलझे रहते हैं
'ताज' बनाने में,
जो-
फेंक दिए जाते हैं
बाद में
काट कर,
तब भी-
क्यूँ नहीं कम होता
तुम्हारा-
ताज के प्रति अनुराग!
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