भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
आदमियत
यह बात नहीं
कि तुम्हारे हाथ
बेजान हैं
लेकिन
तुम, जब भी
अपना 'गाँडीव' उठाते हो
तुम्हारी
पनीली आँखों के सामने
एक जोड़ा आँखें
उतराने लगती हैं।
और तब
आक्रोश से सने
तुम्हारे शक्तिशाली हाथों को
सहसा
लकवा सा मार जाता है
और
तुम
डूब जाते हो-
उन आँखों की
अथाह गहराई में।
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