लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द

पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597
आईएसबीएन :9781613015865

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

185 पाठक हैं

संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


अस्पताल


अस्पताल
जो आदमी नहीं होता
मगर, जीता है आदमी सा।

खामोशी से देखता है
टकटकी लगाए
बरामदे में पड़े
तवे से काले-
चपटे पेट वाले आदमी को,
जो भूख पटाने का जुगाड़
न होते हुए भी
सोचता है-
टूटी टाँग के इलाज की बात,
किसी बेवा की-
आकाश भेदती चीख,
मैले से-
मासूम बच्चे के
सामने से जाती
बाप की लाश,
साफ सुथरे कमरे की खिड़की से
आवारा जानवरों को-
फेंकी जाती मक्खन लगी ब्रेड,

देर रात-
दर्द से बिलबिलाते
मरियल आदमी का
हाल बताने के लिए
डाक्टर का दरवाजा खटखटाने पर
डाँट खाते तीमारदार,

शुभचिन्तकों का जमघट देख
कुप्पा होता-
बीमार सेठ
और
सडांध के बीच
इमरजेन्सी के
खून से सने 'बेड' पर,
इलाज से पहले
कागजी खानापूरी के बीच
दम तोड़ते
अनाम लखपती युवक को,

फिर-
उसकी लाश
टूटे रिक्शे के हवाले करते
 'भगवानों' को।

सब कुछ देखता
सुनता है
और
देर रात सोता नहीं
सुबकता है
अस्पताल-
जो आदमी नहीं होता!

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book