लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द

पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597
आईएसबीएन :9781613015865

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

185 पाठक हैं

संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


अनाम होता बच्चा


अनब्याहे मातृत्व का हक
खुद से अलग कर
समाज की देहरी पे
फेंकते हुए
दर्द से सिहर उठती है
वह, जो कुंवारी माँ है।

ख़ामोशी से घूरती है
अपने
कमज़ोर हाथों को
जिन्हें
बहुत अपनेपन से थामकर
समझाया था किसी ने
उसके अस्तित्व का अर्थ।

कुंवारी माँ-
पी जाती है अविरल बहता
आँखों का नमकीन पानी,
घोंट देती है गला
कोरी छाती के हक का,
सार्थक करने को
परिभाषाएं-
माँ,
देहरी,
समाज की।

हालांकि-
बहुत सालता है उसे
गंदगी के बिछौने में पड़े
अपने ही हिस्से को
बेनाम होते देखना।

चुपचाप, उल्टे पांव
बेरूखी से
मुँह मोड़कर
घर लौटती 'मां' को
नहीं रोक पाता
गोद के अर्थ से अनजान
किलकारियाँ भरता
क्रीड़ारत
अनाम होता बच्चा!

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai