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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597
आईएसबीएन :9781613015865

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


कवि और कविता

श्री सुबोध श्रीवास्तव द्वारा रचित 'पीढ़ी का दर्द' काव्य संग्रह पढ़ा। संग्रह की रचनाओं ने मुझे भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श किया कि जब तक मैंने इसकी आखिरी कविता नहीं पढ़ ली, तब तक मैं इसे अपने से अलग नहीं कर सका। किसी की रचनाओं में किसी सहृदय पाठक का मन इतना डूब जाए कि वो उसे पढ़ने के लिए विवश हो जाए, इसे मैं किसी भी रचनाकार की बहुत बड़ी सफलता मानता हूं।

सुबोध की यह उपलब्धि रेखांकित करने योग्य है। कुछ कर सकने की ललक और फिर कुछ न कर पाने की मजबूरी, इन दो सूत्रों के बीच इस संग्रह की रचनाएं घूमती हैं इसलिए इनमें कहीं आक्रोश, कहीं विवशता, कहीं पीड़ा, कहीं कुंठा, कहीं संत्रास, कहीं आशा, कहीं हताशा, मन की अनेक वृत्तियां शब्दायित हुई हैं। यद्यपि सुबोध का यह प्रथम काव्य संग्रह है लेकिन उनके  'सोच' और शिल्प के नयेपन को देखकर लगता है कि जैसे यह किसी सिद्धहस्त लेखनी की अभिव्यक्ति हो।

मैं इस संग्रह के प्रकाशन पर सुबोध को इस कारण भी बधाई देता हूं कि आज के अनेक नए रचनाकारों के बीच उन्होंने अपने लिए बिलकुल नया रास्ता चुना है। मुझे विश्वास है कि इस संग्रह को हिन्दी साहित्य जगत में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होगा।

- पद्मश्री गोपाल दास 'नीरज'
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'पीढ़ी का दर्द' आद्यन्त पढ़ा। कविता के लिए ऐसी लघु कविता भूमिका के रूप में डा.यतीन्द्र तिवारी का 'कवि और कविता' शीर्षक वक्तव्य सब कुछ कवि सुबोध श्रीवास्तव के इस प्रथम काव्य संग्रह को गौरवान्वित करता हुआ लगा। कविताओं में सबसे पहले मैंने 'खबरची' पढ़ी। बाद में 'तुम्हारे नाम' की सभी कविताएं। दूसरे दौर में 'त्रासदी' और 'चीख' जैसी सभी कविताएं क्रमश: पढ़ ली। मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। संवेदनशीलता और शब्दों के भीतर बैठने की प्रवृत्ति तथा जिजीविषा की संघर्षपूर्ण प्रतीति से आश्वस्त हुआ। 'दर्द' कविता का शीर्षक 'कवच' होता तो बेहतर रहता। 'अनाम होता बच्चा', 'अस्पताल' और परिवेश से सम्बद्ध इस कृति की अनेक रचनाएं स्मरणीय हैं। कुल मिलाकर सुबोध का यह पहला संग्रह उन्हें यशस्वी बनायेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

- डॉ.जगदीश गुप्त

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श्री सुबोध श्रीवास्तव का कविता संग्रह 'पीढ़ी का दर्द' पढ़ा। अद्भुत कविताएं हैं इस संग्रह की। सीधी,सहज और सुई सी चुभती हुई। रंग जी की एक पंक्ति है..'हमने जो भोगा सो गाया'। इन रचनाओं में भी यही प्रक्रिया है,इसी से ये भी सीधी प्राणों में उतरती हैं। चारों ओर फैला,पसरा असहाय समाज और कैमरे के लेंस सी कवि की दृष्टि। 'तुम्हारे नाम' अंश तो जैसे तरल-तरल प्रेम गीतों के पद टूट-टूट कर बिखर गए हों। मेरी अशेष शुभकामनाएं, बधाई!

- भारत भूषण
(वरिष्ठ गीतकार)
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