भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
अपनी बात
मुझे पता नहीं कि मेरे काव्य-संग्रह की कवितायें किस सीमा तक अपनी सार्थकता सिद्ध करने में सफल होंगी किन्तु इतना विश्वास है कि मैंने जो कुछ लिखा है उसका कोई न कोई अंश सुधी पाठकों के मर्म को अवश्य स्पर्श करेगा। अपनी कविताओं में मैंने कोई चमत्कार उत्पन्न नहीं किया है। बस, वही कुछ उतारने की कोशिश की है, जो भीड़ के बीच अकेलेपन का एहसास ओढ़े हुए इत्ती सी ज़िन्दगी में जिया ! यदि किसी कविता विशेष से कोई चमत्कृत हो जाए तो यह मेरा सौभाग्य होगा और मैं अपनी लेखनी को धन्य मानूँगा। मेरी कविताओं में पाठकों को वही मिलेगा जिन हालातों से उन्हें प्रतिदिन, प्रतिपल दो चार होना पड़ता है।
कविता दिशाबोधक होती है। वह भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है। काव्य के इस सत्य के साथ जीवन की रागात्मक चेतना सम्प्रक्त होती है। संवेदना उसे दुलराती है और रचयिता का व्यक्तित्व उसे कंधे पर बिठाये घूमता है। 'पीढ़ी के दर्द' के पीछे यही सोच मार्गदर्शक बना रहा।
मुझे अनेक स्वनामधन्य वरिष्ठ कवियों का आशीर्वाद प्राप्त है, उन्हीं की मंगलकामनाओं का प्रतिफल है 'पीढ़ी का दर्द'।
चार अप्रैल/1994
कानपुर।
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