भाषा एवं साहित्य >> पीढ़ी का दर्द पीढ़ी का दर्दसुबोध श्रीवास्तव
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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।
सिलसिला
आदमी
आजीवन सीखता है
सलीका
छुटपन में
बड़ी अंगुली थामकर
नन्हें कदमों से
नापता है
आंगन का दायरा,
रटता है
परिभाषाएँ-
घर
आँगन
सड़क की।
लड़कपन में-
समझता है
छुटपन की रटी
परिभाषाओं के अर्थ।
फिर
जब, 'आदमी' हो जाता है तो
रचता है
नई परिभाषाएं-
घर,
आँगन,
सड़क
और
आदमी की।
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